गुरुवार, १४ एप्रिल, २०२२

प्रभात दर्शन

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

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चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*चतुर्दशी*,उ.फा.नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

शुक्रवार, १५ एप्रिल २०२२.

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                        *प्रभात दर्शन*

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लभन्ते ब्रह्मनिर्वाण

                  मृषयः क्षीणकल्मषाः,

छिन्नद्वैधा यतात्मानः 

                  सर्वभूतहिते रताः।


 *भावार्थ :- जिनके सब कष्ट एवं पाप नष्ट हो गए हैं, जिनके सब संशय ज्ञान द्वारा निवृत्त हो गए हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में लीन हैं और जिनका जीता हुआ मन निश्चल भाव से परमात्मा में स्थित है, वे ब्रह्मवेत्ता मनुष्य शांत ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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गाथा बलिदानाची* *गुरु नानक देव* *जन्म : १५ अप्रैल,


🇮🇳🇮🇳 *गाथा बलिदानाची*                                     

                *गुरु नानक देव*


       *जन्म : १५ अप्रैल, १४६९*

        (तलवंडी, पंजाब, भारत)

       *मृत्यु : २२ सितंबर, १५३९*

                 (भारत)                                                 पिता :  कालू

माता : तृप्ता

पत्नी : सुलक्खनी

संतान : श्रीचन्द,लक्ष्मीदास

कर्म भूमि : भारत

कर्म-क्षेत्र : समाज सुधारक

मुख्य रचनाएँ : जपुजी, तखारी' राग के बारहमाहाँ

भाषा : फ़ारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी , ब्रजभाषा, खड़ीबोली

प्रसिद्धि : सिक्खों के प्रथम गुरु

नागरिकता : भारतीय

उत्तराधिकारी : गुरु अंगद देव

अन्य जानकारी: गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु आदि सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में समेटे हुए थे।

गुरु नानक  सिक्खों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) थे। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से संबोधित करते हैं। गुरु नानक २० अगस्त,१५०७ को सिक्खों के प्रथम गुरु बने थे। वे इस पद पर २२ सितम्बर,१५३९ तक रहे।


❇️ *परिचय*

पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में १५ अप्रैल, १४६९ को एक किसान के घर गुरु नानक उत्पन्न हुए। यह स्थान लाहौर से ३० मील पश्चिम में स्थित है। अब यह 'नानकाना साहब' कहलाता है। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। नानक के पिता का नाम कालू एवं माता का नाम तृप्ता था। उनके पिता खत्री जाति एवं बेदी वंश के थे। वे कृषि और साधारण व्यापार करते थे और गाँव के पटवारी भी थे। गुरु नानक देव की बाल्यावस्था गाँव में व्यतीत हुई। बाल्यावस्था से ही उनमें असाधारणता और विचित्रता थी। उनके साथी जब खेल-कूद में अपना समय व्यतीत करते तो वे नेत्र बन्द कर आत्म-चिन्तन में निमग्न हो जाते थे। इनकी इस प्रवृत्ति से उनके पिता कालू चिन्तित रहते थे।


💁‍♂️ *आरंभिक जीवन*

सात वर्ष की आयु में वे पढ़ने के लिए गोपाल अध्यापक के पास भेजे गये। एक दिन जब वे पढ़ाई से विरक्त हो, अन्तर्मुख होकर आत्म-चिन्तन में निमग्न थे, अध्यापक ने पूछा- पढ़ क्यों नहीं रहे हो? गुरु नानक का उत्तर था- मैं सारी विद्याएँ और वेद-शास्त्र जानता हूँ। गुरु नानक देव ने कहा- मुझे तो सांसारिक पढ़ाई की अपेक्षा परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी प्रतीत होती है, यह कहकर निम्नलिखित वाणी का उच्चारण किया- मोह को जलाकर (उसे) घिसकर स्याही बनाओ, बुद्धि को ही श्रेष्ठ काग़ज़ बनाओ, प्रेम की क़लम बनाओ और चित्त को लेखक। गुरु से पूछ कर विचारपूर्वक लिखो (कि उस परमात्मा का) न तो अन्त है और न सीमा है। इस पर अध्यापक जी आश्चर्यान्वित हो गये और उन्होंने गुरु नानक को पहुँचा हुआ फ़क़ीर समझकर कहा- तुम्हारी जो इच्छा हो सो करो। इसके पश्चात् गुरु नानक ने स्कूल छोड़ दिया। वे अपना अधिकांश समय मनन, ध्यानासन, ध्यान एवं सत्संग में व्यतीत करने लगे। गुरु नानक से सम्बन्धित सभी जन्म साखियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि उन्होंने विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-महत्माओं का सत्संग किया था। उनमें से बहुत से ऐसे थे, जो धर्मशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। अन्त: साक्ष्य के आधार पर यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि गुरु नानक ने फ़ारसी का भी अध्ययन किया था। 'गुरु ग्रन्थ साहब' में गुरु नानक द्वारा कुछ पद ऐसे रचे गये हैं, जिनमें फ़ारसी शब्दों का आधिक्य है।


👦🏻 *बचपन*

गुरु नानक की अन्तमुंखी-प्रवृत्ति तथा विरक्ति-भावना से उनके पिता कालू चिन्तित रहा करते थे। नानक को विक्षिप्त समझकर कालू ने उन्हें भैंसे चराने का काम दिया। भैंसे चराते-चराते नानक जी सो गये। भैंसें एक किसान के खेत में चली गयीं और उन्होंने उसकी फ़सल चर डाली। किसान ने इसका उलाहना दिया किन्तु जब उसका खेत देखा गया, तो सभी आश्चर्य में पड़े गये। फ़सल का एक पौधा भी नहीं चरा गया था। ९ वर्ष की अवस्था में उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। यज्ञोपवीत के अवसर पर उन्होंने पण्डित से कहा - दया कपास हो, सन्तोष सूत हो, संयम गाँठ हो, (और) सत्य उस जनेउ की पूरन हो। यही जीव के लिए (आध्यात्मिक) जनेऊ है। ऐ पाण्डे यदि इस प्रकार का जनेऊ तुम्हारे पास हो, तो मेरे गले में पहना दो, यह जनेऊ न तो टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न यह जलता है और न यह खोता ही है।                           👫🏻 *विवाह*


सन १४८५ ई. में नानक का विवाह बटाला निवासी, मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी है। २८ वर्ष की अवस्था में उनके बड़े पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। ३१ वर्ष की अवस्था में उनके द्वितीय पुत्र लक्ष्मीदास अथवा लक्ष्मीचन्द उत्पन्न हुए। गुरु नानक के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा किन्तु उनके सारे प्रयास निष्फल सिद्ध हुए। घोड़े के व्यापार के निमित्त दिये हुए रुपयों को गुरु नानक ने साधुसेवा में लगा दिया और अपने पिताजी से कहा कि यही सच्चा व्यापार है। नवम्बर, सन् १५०४ ई. में उनके बहनोई जयराम (उनकी बड़ी बहिन नानकी के पति) ने गुरु नानक को अपने पास सुल्तानपुर बुला लिया। नवम्बर,१५०४ ई. से अक्टूबर १५०७ ई. तक वे सुल्तानपुर में ही रहें अपने बहनोई जयराम के प्रयास से वे सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत ख़ाँ के यहाँ मादी रख लिये गये। उन्होंने अपना कार्य अत्यन्त ईमानदारी से पूरा किया। वहाँ की जनता तथा वहाँ के शासक दौलत ख़ाँ नानक के कार्य से बहुत सन्तुष्ट हुए। वे अपनी आय का अधिकांश भाग ग़रीबों और साधुओं को दे देते थे। कभी-कभी वे पूरी रात परमात्मा के भजन में व्यतीत कर देते थे। मरदाना तलवण्डी से आकर यहीं गुरु नानक का सेवक बन गया था और अन्त तक उनके साथ रहा। गुरु नानक देव अपने पद गाते थे और मरदाना रवाब बजाता था। गुरु नानक नित्य प्रात: बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। कहते हैं कि एक दिन वे स्नान करने के पश्चात् वन में अन्तर्धान हो गये। उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ, मैंने तुम्हें आनन्दित किया है। जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेगें, वे भी आनन्दित होगें। जाओ नाम में रहो, दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो और दूसरों से भी नाम स्मरण कराओं। इस घटना के पश्चात् वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर मूला को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। मरदाना उनकी यात्रा में बराबर उनके साथ रहा।


👨‍🦯 *यात्राएँ*

गुरु नानक की पहली 'उदासी' (विचरण यात्रा) अक्तूबर , १५०७ ई. में १५१५ ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारिका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया। उन्होंने बहुतों का हृदय परिवर्तन किया। ठगों को साधु बनाया, वेश्याओं का अन्त:करण शुद्ध कर नाम का दान दिया, कर्मकाण्डियों को बाह्याडम्बरों से निकालकर रागात्मिकता भक्ति में लगाया, अहंकारियों का अहंकार दूर कर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया। यात्रा से लौटकर वे दो वर्ष तक अपने माता-पिता के साथ रहे।

उनकी दूसरी 'उदासी' १५१७ ई. से १५१८ ई. तक यानी एक वर्ष की रही। इसमें उन्होंने ऐमनाबाद, सियालकोट, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और अन्त में वे करतारपुर पहुँचे।

तीसरी 'उदासी' १५१८ ई. से १५२१ ई. तक लगभग तीन वर्ष की रही। इसमें उन्होंने रियासत बहावलपुर, साधुबेला (सिन्धु), मक्का, मदीना, बग़दाद, बल्ख बुखारा, क़ाबुल, कन्धार, ऐमानाबाद आदि स्थानों की यात्रा की। १५२१ ई. में ऐमराबाद पर बाबर का आक्रमण गुरु नानक ने स्वयं अपनी आँखों से देखा था। अपनी यात्राओं को समाप्त कर वे करतारपुर में बस गये और १५२१ ई. से १५३९ ई. तक वहीं रहे।             🌀 *व्यक्तित्व*

गुरुनानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति और क्रिया-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। लोगों पर उनके विचारों का असाधारण प्रभाव पड़ा। उनमें सभी गुण मौजूद थे। पैगंबर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्मसुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबंधु आदि सभी गुण जैसे एक व्यक्ति में सिमटकर आ गए थे। उनकी रचना 'जपुजी' का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है।


✍️ *रचनाएँ और शिक्षाएँ*

'श्री गुरु-ग्रन्थ साहब' में उनकी रचनाएँ 'महला १' के नाम से संकलित हैं। गुरु नानक की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान, सत्य, कर्त्ता, निर्भय, निर्वर, अयोनि, स्वयंभू है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति-पूजा आदि निरर्थक है। बाह्य साधनों से उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। आन्तरिक साधना ही उसकी प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। गुरु-कृपा, परमात्मा कृपा एवं शुभ कर्मों का आचरण इस साधना के अंग हैं। नाम-स्मरण उसका सर्वोपरि तत्त्व है, और 'नाम' गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उनकी वाणी में यत्र-तत्र तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति की मनोहर झाँकी मिलती है, जिसमें उनकी असाधारण देश-भक्ति और राष्ट्र-प्रेम परिलक्षित होता है। उन्होंने हिंन्दूओं-मुसलमानों दोनों की प्रचलित रूढ़ियों एवं कुसंस्कारों की तीव्र भर्त्सना की है और उन्हें सच्चे हिन्दू अथवा सच्चे मुसलमान बनने की विधि बतायी है। सन्त-साहित्य में गुरु नानक ही एक ऐसे व्यक्ति हैं; जिन्होंने स्त्रियों की निन्दा नहीं की, अपितु उनकी महत्ता स्वीकार की है। गुरुनानक देव जी ने अपने अनु‍यायियों को जीवन की दस शिक्षाएँ दी-


ईश्वर एक है।

सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।

ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।

ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।

ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।

बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ।

सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा माँगनी चाहिए।

मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।

भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।                             🔷 *भक्त कवि गुरु नानक*

पंजाब में मुसलमान बहुत दिनों से बसे थे जिससे वहाँ उनके कट्टर 'एकेश्वरवाद' का संस्कार धीरे - धीरे प्रबल हो रहा था। लोग बहुत से देवी देवताओं की उपासना की अपेक्षा एक ईश्वर की उपासना को महत्व और सभ्यता का चिह्न समझने लगे थे। शास्त्रों के पठन पाठन का क्रम मुसलमानों के प्रभाव से प्राय: उठ गया था जिससे धर्म और उपासना के गूढ़ तत्व को समझने की शक्ति नहीं रह गई थी। अत: जहाँ बहुत से लोग जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाते थे वहाँ कुछ लोग शौक़ से भी मुसलमान बनते थे। ऐसी दशा में कबीर द्वारा प्रवर्तित 'निर्गुण संत मत' एक बड़ा भारी सहारा समझ पड़ा।


☮️ *निर्गुण उपासना*

गुरुनानक आरंभ से ही भक्त थे अत: उनका ऐसे मत की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था, जिसकी उपासना का स्वरूप हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को समान रूप से ग्राह्य हो। उन्होंने घर बार छोड़ बहुत दूर दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की 'निर्गुण उपासना' का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए। कबीरदास के समान वे भी कुछ विशेष पढ़े लिखे न थे। भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् १६६१) ग्रंथसाहब में किया गया है। ये भजन कुछ तो पंजाबी भाषा में हैं और कुछ देश की सामान्य काव्य भाषा हिन्दी में हैं। यह हिन्दी कहीं तो देश की काव्यभाषा या ब्रजभाषा है, कहीं खड़ी बोली जिसमें इधर उधर पंजाबी के रूप भी आ गए हैं, जैसे चल्या, रह्या। भक्त या विनय के सीधे सादे भाव सीधी सादी भाषा में कहे गए हैं, कबीर के समान अशिक्षितों पर प्रभाव डालने के लिए टेढ़े मेढ़े रूपकों में नहीं। इससे इनकी प्रकृति की सरलता और अहंभावशून्यता का परिचय मिलता है। संसार की अनित्यता, भगवद्भक्ति और संत स्वभाव के संबंध में उन्होंने कहा हैं -


इस दम दा मैनूँ कीबे भरोसा, आया आया, न आया न आया।

यह संसार रैन दा सुपना, कहीं देखा, कहीं नाहि दिखाया।

सोच विचार करे मत मन मैं, जिसने ढूँढा उसने पाया।

नानक भक्तन दे पद परसे निसदिन राम चरन चित लाया


जो नर दु:ख में दु:ख नहिं मानै।

सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै

नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।

हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना

आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरास।

काम, क्रोध जेहि परसे नाहि न तेहिं घट ब्रह्म निवासा

गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगुति पिछानी।

नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी।


📝 *प्रकृति चित्रण*


गुरु नानक देव, तलवंडी, पंजाब

गुरु नानक की कविता में कहीं-कहीं प्रकृति का बड़ा सुन्दर चित्रण मिलता है। 'तखारी' राग के बारहमाहाँ (बारहमासा) में प्रत्येक मास का हृदयग्राही वर्णन है। चैत्र में सारा वन प्रफुल्लित हो जाता है, पुष्पों पर भ्रमरों का गुंजन बड़ा ही सुहावना लगता है। वैशाख में शाखाएँ अनेक वेश धारण करती हैं। इसी प्रकार ज्येष्ठ-आषाढ़ की तपती धरती, सावन-भादों की रिमझिम, दादर, मोर, कोयलों की पुकारें, दामिनी की चमक, सर्पों एवं मच्छरों के दर्शन आदि का रोचक वर्णन है। प्रत्येक ऋतु की विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है।                                        🟡 *पंजासाहब*

मुख्य लेख : पंजासाहब

सिक्ख तीर्थ पेशावर जाने वाले मार्ग पर तक्षशिला से एक स्टेशन आगे तथा हसन अब्दाल से दो मील दक्षिण में पंजासाहब स्थान स्थित है।


🔮 *राग और रस*

गुरु नानक की वाणी में शान्त एवं श्रृंगार रस की प्रधानता है। इन दोनों रसों के अतिरिक्त, करुण, भयानक, वीर, रौद्र, अद्भुत, हास्य और वीभत्स रस भी मिलते हैं। उनकी कविता में वैसे तो सभी प्रसिद्ध अलंकार मिल जाते हैं, किन्तु उपमा और रूपक अलंकारों की प्रधानता है। कहीं-कहीं अन्योक्तियाँ बड़ी सुन्दर बन पड़ी हैं। गुरु नानक ने अपनी रचना में निम्नलिखित उन्नीस रागों के प्रयोग किये हैं- सिरी, माझ, गऊड़ी, आसा, गूजरी, बडहंस, सोरठि, धनासरी, तिलंग, सही, बिलावल, रामकली, मारू, तुखारी, भरेउ, वसन्त, सारंग, मला, प्रभाती।


🌀 *भाषा*

भाषा की दृष्टि से गुरु नानक की वाणी में फ़ारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी , ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि के प्रयोग हुए हैं। संस्कृत, अरबी और फ़ारसी के अनेक शब्द ग्रहण किये गये हैं। १५२१ तक इन्होंने तीन यात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत, फ़ारस और अरब के मुख्य-मुख्य स्थानों का भ्रमण किया।            🪔 *मृत्यु*

गुरु नानक की मृत्यु सन् १५३९ ई. में हुई। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में 'ज्योति' में लीन हो गए। गुरु नानक आंतरिक साधना को सर्वव्यापी परमात्मा की प्राप्ति का एकमात्र साधन मानते थे। वे रूढ़ियों के कट्टर विरोधी थे। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक,योगी,गृहस्थ,धर्मसुधारक,समाजसुधारक,कवि,देशभक्त और विश्वबंधु-सभी के गुण समेटे हुए थे।                                                                                                                                                                                                                                 

🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳   

🙏🙏🙏 *शुभ प्रभात*🙏🙏🙏

संकलन -)

गजानन गोपेवाड 

उमरखेड जिल्हा- यवतमाळ ४४५२०६

गाथा बलिदानाची वर्धमान महाविर

 


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🚩🚩 *गाथा बलिदानाची* 🚩🚩

       

              *वर्धमान महावीर*

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      *जन्म : ई.पू. ५९९*

  [ क्षत्रिय कुण्डग्राम (कुंडलपुर, वैशाली) बिहार]

मृत्यु स्थान : पावापुरी

 अन्य नाम : वर्धमान, आदिनाथ, 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'अतिवीर' आदि।                                                                                         पिता : सिद्धार्थ                                                                           माता : त्रिशला देवी

पत्नी : यशोदा

वंश : ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय (गोत्र 'काश्यप')

चिह्न : सिंह

वर्ण : सुवर्ण

अन्य जानकारी : अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया।

                                                                                  महावीर या वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ की परम्परा में २४ वें जैन तीर्थंकर थे। वे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्हें एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं था। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए थे, उसी युग में महावीर और बुद्ध पैदा हुए। भगवान महावीर तथा बुद्ध, दोनों ने ही इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास किया।

                                                                                                        💁‍♂️ *जीवन परिचय*

महावीर स्वामी का जीवन काल ५९९ ई. ईसा पूर्व से ५२७ ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनका जन्म वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है।


👫🏻 *विवाह*

कलिंग नरेश की कन्या 'यशोदा' से महावीर का विवाह हुआ। किंतु ३० वर्ष की उम्र में अपने ज्येष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है।


🔮 *दीक्षा प्राप्ति*

महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम 'ब्रह्मशांति' और यक्षिणी का नाम 'सिद्धायिका देवी' था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या ११ थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् २ दिन बाद खीर से इन्होंने प्रथम पारणा किया। दीक्षा प्राप्ति के बाद १२ वर्ष और ६ .५ महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।


♨️ *कुण्डलपुर महोत्सव*

दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के अनुसार भगवान महावीर बिहार प्रांत के कुंडलपुर नगर में आज (सन २०१३) से २६१२ वर्ष पूर्व महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ से चैत्र कृष्ण तेरस को जन्मे थे। वह कुंडलपुर वर्तमान में नालंदा ज़िले में अवस्थित है। वहाँ सन २००२ में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ के साथ पदविहार करके गईं और उनकी पावन प्रेरणा से कुंडलपुर में २६०० वर्ष प्राचीन नंद्यावर्त महल की प्रतिकृति का (७ मंज़िल ऊँचा) निर्माण हुआ, जिसे बिहार सरकार का पर्यटन विभाग पर्यटकों के लिए ख़ूब प्रचारित कर रहा है। अतः वहाँ प्रतिदिन पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों का ताँता लगा रहता है। कुंडलपुर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन बिहार सरकार एवं कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति के द्वारा कुण्डलपुर महोत्सव आयोजित किया जाता है। 


🌀 *अन्य नाम*

महावीर स्वामी के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम 'जैन धर्म' पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धांत 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया।✴️ *वर्धमान*

वीरःसर्व सुरासुरेंद्र महितो , वीरं बुधाः संश्रिताः ।

वीरेणैव हतः स्वकर्मनिचयो , वीराय भक्त्या नम ।।

वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं , वीरस्य वीरं तपो ।

वीरे श्री द्युतिकांतिकीर्तिधृतयो , हे वीर ! भद्रं त्वयि ।।१।।


भारत के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। इन्द्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने ऐरावत हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। आषाढ़, शुक्ल पक्ष की षष्ठी के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर प्राणतेन्द्र ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। चैत्र, शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सोमवार के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने 'वर्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने 'सन्मति' रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे 'महावीर' नाम से अभिहित किया।


 ⚛️ *कैवल्य ज्ञान*

विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और संस्कार के लोप हो जाने से आत्मा के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को 'कैवल्य' कहते हैं। पातंजलसूत्र के अनुसार चित्‌ द्वारा आत्मा के साक्षात्कार से जब उसके कर्त्तृत्त्व आदि अभिमान छूटकर कर्म की निवृत्ति हो जाती है, तब विवेकज्ञान के उदय होने पर मुक्ति की ओर अग्रसारित आत्मा के चित्स्वरूप में जो स्थिति उत्पन्न होती हैं, उसकी संज्ञा कैवल्य है। वेदांत के अनुसार परामात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जन्ममरण से मुक्तावस्था को कैवल्य कहा गया है। योगसूत्रों के भाष्यकार व्यास के अनुसार, जिन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर कैवल्य प्राप्त किया है, उन्हें 'केवली' कहा जाता है। ऐसे केवली अनेक हुए है। बुद्धि आदि गुणों से रहित निर्मल ज्योतिवाले केवली आत्मरूप में स्थिर रहते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में शुक, जनक आदि ऋषियों को जीवन्मुक्त बताया है, जो जल में कमल की भाँति, संसार में रहते हुए भी मुक्त जीवों के समान निर्लेप जीवनयापन करते है। जैन ग्रंथों में केवलियों के दो भेद- 'संयोगकेवली' और 'अयोगकेवली' बताए गए है।


🚺 *आचार-संहिता*

महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है-


किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना

किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना

मिथ्या भाषण न करना

आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना

वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।

जैन ग्रंथ एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। आपने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बनाकर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। आपने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति सम्पन्न की। उद्घोष किया कि आँख मूँदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, रूढ़ि नहीं है, प्रदर्शन नहीं है, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं है। आपने धर्मों के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाई। धर्म को कर्म-कांडों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाला। घोषणा की कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में, बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परमशक्ति का अवतार बनकर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन हो जाने में नहीं है, बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।


प्रोफेसर जैन ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान में जैन भजनों में भगवान महावीर को 'अवतारी' वर्णित किया जा रहा है। यह मिथ्या ज्ञान का प्रतिफल है। वास्तव में भगवान महावीर का जन्म किसी अवतार का पृथ्वी पर शरीर धारण करना नहीं है। उनका जन्म नारायण का नर शरीर धारण करना नहीं है, नर का ही नारायण हो जाना है। परमात्म शक्ति का आकाश से पृथ्वी पर अवतरण नहीं है। कारण-परमात्मास्वरूप का उत्तारण द्वारा कार्य-परमात्मस्वरूप होकर सिद्धालय में जाकर अवस्थित होना है। भगवान महावीर की क्रांतिकारी अवधारणा थी कि जीवात्मा ही ब्रह्म है।

                                             🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳   

*🙏🙏🙏शुभ प्रभात🙏🙏🙏*

संकलन -)

गजानन गोपेवाड 

उमरखेड जिल्हा- यवतमाळ ४४५२०६

मंगळवार, १२ एप्रिल, २०२२

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

🦋🦚🌹🌻🦢🛕🦢🌻🌹🦚🦋

चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*एकादशी*,मघा नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

मंगलवार, १२ एप्रिल २०२२.

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                         *प्रभात दर्शन*

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       *"किसी जिज्ञासु ने एक महात्मा से पूछा कि सवेरा तो रोज ही होता है परन्तु शुभ प्रभात क्या होता है??*


*महात्मा ने बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया-*


      *"जीवन में जिस दिन प्रातः हम अपने अंदर की बुराईयों को समाप्त कर उच्च विचार तथा अपनी आत्मा को शुद्ध करके दिन का आरम्भ करते हो, वही शुभ प्रभात होता है"*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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रविवार, १० एप्रिल, २०२२

Tulipa gesneriana, Didier's Tulip

 

 शोधा

 तुलिपा गेसनेरियाना

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 सुधारणे

 Tulipa gesneriana, Didier's Tulip[2] किंवा गार्डन ट्यूलिप, लिली कुटुंबातील वनस्पतींची एक प्रजाती आहे, ज्याची लागवड अनेक देशांमध्ये शोभेच्या वस्तू म्हणून केली जाते कारण तिच्या मोठ्या, आकर्षक फुलांमुळे.  या उंच, उशीरा-फुललेल्या प्रजातीमध्ये एकच फुलणारे फूल आणि रेखीय किंवा विस्तृतपणे लॅन्सोलेट पाने आहेत.  ही एक जटिल संकरित नव-प्रजाती आहे, आणि तिला तुलिपा × गेस्नेरियाना देखील म्हटले जाऊ शकते.[3]  ट्यूलिपच्या बहुतेक वाणांचे उत्पादन ट्यूलिपा गेस्नेरियाना पासून केले जाते.  मध्य आणि दक्षिण युरोपच्या काही भागांमध्ये त्याचे नैसर्गिकीकरण झाले आहे[4] आणि उत्तर अमेरिकेतील विखुरलेल्या ठिकाणी.


 तुलिपा गेसनेरियाना

 צבעונים.JPG

 वैज्ञानिक वर्गीकरण संपादित

 राज्य:

 वनस्पती

 क्लेड:

 ट्रॅकोफाइट्स

 क्लेड:

 एंजियोस्पर्म्स

 क्लेड:

 मोनोकोट्स

 ऑर्डर:

 लिलियाल्स

 कुटुंब:

 लिलिअसी

 उपकुटुंब:

 लिलिओइडी

 जमात:

 लिलीए

 वंश:

 ट्यूलिपा

 उपजात:

 Tulipa subg.  ट्यूलिपा

 प्रजाती:

 टी. गेसनेरियाना

 द्विपदी नाव

 तुलिपा गेसनेरियाना

 एल.

 समानार्थी शब्द[1]

 समानार्थी शब्द

 Tulipa Coronaria Salisb.

 Tulipa hortensis Gaertn.

 ट्यूलिपा स्ट्रिस्टा स्टोक्स

 Tulipa pubescens Willd.

 Tulipa cornuta Redouté

 Tulipa laciniata Fisch.  माजी बेलर्म.

 Tulipa campsopetala Delaun.  माजी Loisel.

 Tulipa stenopetala Delaun.  माजी Loisel.

 Tulipa bonarotiana Reboul

 ट्यूलिपा स्ट्रॅंगुलता रेबोल

 Tulipa media C.Agardh माजी Schult.  & Schult.f.

 Tulipa फिश repens.  माजी गोड

 Tulipa bicolor Raf.

 ट्यूलिपा स्कॅब्रिस्कापा फॉक्स-स्ट्रॅंगव.

 Tulipa unguiculata Raf.

 Tulipa neglecta (Reboul) Reboul

 ट्यूलिपा सेरोटीना रेबोल

 Tulipa variopicta Reboul

 ट्यूलिपा स्पॅथुलाटा बर्टोल.

 Tulipa Didieri Jord.

 Tulipa fransoniana Parl.

 Tulipa platystigma Jord.

 Tulipa Billietiana Jord.

 Tulipa मॉरिटियाना Jord.

 Tulipa planifolia Jord.

 तुलिपा मौरियाना जॉर्ड.  & Fourr.

 ट्यूलिपा ऍक्युटिफ्लोरा डीसी.  माजी बेकर

 तुलिपा एलिगेन्स बेकर

 Tulipa fulgens बेकर

 ट्यूलिपा रेट्रोफ्लेक्सा बेकर

 ट्यूलिपा मौरियानेन्सिस डिडियर

 Tulipa macrospeila बेकर

 ट्यूलिपा लेव्हियरला जोडते

 ट्यूलिपा एट्रस्का लेव्हियर

 Tulipa lurida Levier

 ट्यूलिपा पॅसेरिनियाना लेव्हियर

 Tulipa sommieri Levier.

 Tulipa baldaccii Mattei

 Tulipa marjolletii E.P.Perrier आणि Songeon

 Tulipa segusiana E.P.Perrier & Songeon

 Tulipa saracenica E.P.Perrier

 Tulipa perrieri Marj.  माजी पी. फोर्न.

 ट्यूलिपा ग्रेंजिओलेन्सिस थॉमेन

 तुलिपा मॉन्टिसंद्रेई जे. प्रधोम्मे

 ट्यूलिपा रुबिडुसा लिझर

 Tulipa sedunii Lieser

 Tulipa norvegica Lieser


 तुलिपा गेसनेरियानाचे चित्रण आणि उतारा.

 युरोपमध्ये आलेल्या ट्यूलिपच्या इतर प्रजातींप्रमाणेच, इस्तंबूलमधील ओट्टोमन साम्राज्याच्या सुलतानच्या संग्रहातून या संकराचा उगम तुर्कीमध्ये झाला आहे असे मानले जाते.[1]  1574 मध्ये, सुलतान सेलीम II ने सीरियातील अजाझच्या काडीला 50,000 ट्यूलिप बल्ब पाठवण्याचे आदेश दिले.  तथापि, हार्वे या स्त्रोताशी संबंधित अनेक समस्यांकडे लक्ष वेधतात आणि ट्यूलिप्स आणि हायसिंथ (sümbüll), मूळ भारतीय स्पाइकनार्ड (Nardostachys jatamansi) मध्ये गोंधळ होण्याची शक्यता आहे.[6]  सुलतान सेलीमने इस्तंबूलमधील टोपकापी सराय येथील त्याच्या बागांसाठी क्राइमियामधील केफे बंदरातून केफे लाले (कॅफे-लाले या मध्ययुगीन नावावरून कॅफे-लाले म्हणूनही ओळखले जाणारे) 300,000 बल्ब आयात केले.  ते संग्रहात उपस्थित असलेल्या इतर प्रजातींसह संकरित केले जातात.[7]  Tulipa schrenkii अनुवांशिकदृष्ट्या Tulipa gesneriana शी जवळून संबंधित आहे, आणि कधीकधी त्याच प्रजातींमध्ये वर्गीकृत आहे.


 ट्यूलिपा गेस्नेरियाना 1554 मध्ये कॉन्स्टँटिनोपल येथून पश्चिम युरोपमध्ये ओळखले गेले. त्याचे वर्णन 1559 मध्ये कॉनरॅड गेसनर यांनी केले.[8]


 जेव्हा ट्यूलिप मूळतः ऑट्टोमन साम्राज्यातून युरोपमध्ये आला तेव्हा त्याची लोकप्रियता वाढली आणि डच सुवर्णयुगातील नवीन श्रीमंत व्यापार्‍यांसाठी ते त्वरीत स्थितीचे प्रतीक बनले.  मोझॅक विषाणूने बल्बला संसर्ग करण्यास सुरुवात केल्यामुळे, ब्लूममध्ये दुर्मिळ आणि नेत्रदीपक परिणाम निर्माण होतात परंतु आधीच मर्यादित संख्येत बल्ब कमकुवत आणि नष्ट होत असताना, 1634 ते 1637 च्या दरम्यान ट्यूलिप मॅनिया म्हणून ओळखल्या जाणार्‍या सट्टेबाजीचा उन्माद सुरू झाला. बल्बची देवाणघेवाण जमीन, पशुधनासाठी केली गेली.  , आणि घरे आणि डच लोकांनी फ्युचर्स मार्केट तयार केले जेथे हंगामाच्या शेवटी बल्ब खरेदी करण्याचे करार केले आणि विकले गेले.[9]  सेम्पर ऑगस्टस या एकाच बल्बने हार्लेममध्ये 6,000 फ्लोरिन्स आणले - त्या वेळी, फ्लोरिन गव्हाचे बुशेल खरेदी करू शकत असे.


 फ्लॉवर आणि बल्ब ऍलर्जीन, ट्यूलिपोसाइड ए द्वारे त्वचारोग होऊ शकतात, जरी बल्ब थोडे वाईट परिणामाने खाल्ले तरी.  बल्ब वाळवले जाऊ शकतात आणि मळलेले असू शकतात आणि तृणधान्ये किंवा पिठात जोडले जाऊ शकतात.[उद्धरण आवश्यक]


 गोड सुगंधी उभयलिंगी फुले एप्रिल आणि मे महिन्यात दिसतात.  बल्ब दंवास अत्यंत प्रतिरोधक असतात आणि ते अतिशीत कमी तापमानाला चांगले सहन करू शकतात — योग्य वाढ आणि फुलांच्या वाढीसाठी कमी तापमानाचा कालावधी आवश्यक असतो, फायटोहॉर्मोन ऑक्सीनच्या संवेदनशीलतेत वाढ होते.[10]


 यूके नॅशनल कलेक्शन ऑफ टुलिपा एसपीपी.  टी फ्रीथ यांनी रॉयल बोटॅनिक गार्डन्स, केव येथे आयोजित केले आहे.[11]


 ट्यूलिपा गेस्नेरियाना, ट्यूलिपा फॉस्टेरियाना आणि ट्यूलिपा इचलेरी यासारख्या विविध ट्यूलिप फुलांमध्ये अँथोसायनिन्स आढळतात.[12]


 संदर्भ

 बाह्य दुवे

 Citation bot ने 9 महिन्यांपूर्वी शेवटचे संपादित केले

 विकिपीडिया

 अन्यथा नमूद केल्याशिवाय सामग्री CC BY-SA 3.0 अंतर्गत उपलब्ध आहे.



शुक्रवार, ८ एप्रिल, २०२२

प्रभात दर्शन

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

🦋🦚🌹🌻🦢🛕🦢🌻🌹🦚🦋

चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*अष्टमी*,पुनर्वसु नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

शनिवार, ०९ एप्रिल २०२२.

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                         *प्रभात दर्शन*

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यस्य पुत्रो वशीभूतो 

                  भार्या छन्दानुगामिनी,

विभवे यश्च सन्तुष्ट

                  स्तस्य स्वर्ग इहैव हि ।।


*भावार्थः- उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया... जिसका पुत्र आज्ञांकारी है, जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है और जिसे अपने धन पर संतोष  है।*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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🌎 *ज्ञान-विज्ञान* 🌎 ═════════════ *प्लॅस्टिक*


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   @ संकलन @

  गजानन गोपेवाड 

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            🌎 *ज्ञान-विज्ञान* 🌎

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*प्लॅस्टिक* 

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प्लॅस्टिकने आपले सारे जग व्यापून टाकले आहे. अजून काही वर्षांत ही स्थिती अधिकच वाढणार आहे. प्लास्टिक नसलेली वस्तू त्या वेळी शोधावी लागेल, अशी परिस्थिती यावी, असा शास्त्रज्ञांचा प्रयत्न चालू आहे. त्या वेळी प्लास्टिकचे घर, प्लास्टिकची मोटार, वाहन आपण वापरत असू, असा त्यांचा कयास आहे.


पेन, पाटी, रेडिओ - टीव्ही कॅबिनेट्स, खुर्च्या, पादत्राणे येथपासून रेनकोट, कपडे, कपबशा येथपर्यंत प्लास्टिकने मजल मारली आहे. १८६२ साली अलेक्झांडर पार्क याने प्लास्टिक पॉलिमरचा प्रथम शोध लावला. अनेक रेणूंची साखळी असलेले हे प्लास्टिक जन्माला आले, ते हस्तीदंती रंगात. पण लवकरच ते विविधरंगी तर बनलेच, पण रेणूंच्या साखळीत थोडेफार बदल करीत किंवा सुरुवातीचे पदार्थ बदलत त्यांचे स्वरूप खूप वाढून विविध प्रकारचे होत गेले.


 प्लास्टिक संशोधनाला खरी सुरुवात १९३० सालच्या सुमाराला झाली. मंदीचा काळ होता. लाकूड व पोलाद यांची निर्मिती कमी होती. त्यांना पर्याय म्हणून प्लास्टिकचा वापर त्याच काळात सुरू झाला. लाकडाप्रमाणे कुजत तर नाही व लोखंडाप्रमाणे गंजतही नाही म्हणून प्लास्टिक सगळ्यांचे लाडके बनू लागले. रबरी कोटिंग हळूहळू कडक बनत असते. रबरी पादत्राणे चिकटत असत. म्हणून प्लास्टिकने त्यांची जागा घेतली. हीच गोष्ट वायरिंगच्या इन्सुलेशनसाठी प्लास्टिक वापरायला कारणीभूत होत गेली.


१९६० सालच्या दशकात प्लॅस्टिकचे पुढील धागे म्हणजे नायलॉन, पॉलिएस्टर, अॅक्रिलिक यांची मोठ्या प्रमाणावर निर्मिती व वापर सुरू झाला. आज सर्वात स्वस्त व लोकप्रिय असे याच धाग्यांचे कपडे जगभर वापरले जातात. यानंतरचा लाडका वापर सुरू झाला, तो पाॅलिस्टिरिन व पीव्हीसीचा. सर्व पॅकिंगला पॉलिस्टिरिन फोम व पीव्हीसीची पादत्राणे आज प्रत्येकजण मागत असतो.


 प्लॅस्टिक हे क्रूडतेलातील काही घटक वापरून बनते. काही मोजक्या प्रकारात लाकूड, कोळसा, नैसर्गिक गॅस यांचाही वापर करतात. यामुळे खनिज तेल जसे मोठ्या प्रमाणावर उत्खनन करून काढले जात होते, तसे प्लॅस्टिकचे उत्पादनही वाढत गेले. सुरुवातीचे प्लॅस्टिक अतिकडक असे. आज मात्र असंख्य प्रकारात व पाहिजे त्या आकारात प्लास्टिक उपलब्ध आहे.


प्लॅस्टिकचे दोन मुख्य प्रकार पडतात. एका प्रकारात दर वेळी उष्णता देऊन प्लास्टिक वितळवून त्याला नवीन आकार देणे शक्य होते. याला 'थर्मोप्लास्टिक' म्हणतात. दुसऱ्या प्रकारात मात्र एकदाच दिलेला आकार कायम राहतो. याला 'थर्मोसेटप्लास्टिक' म्हणतात. सुरीचे वा दाराचे हँडल या प्रकारातले असते, तर छोटे मोठे ट्रे, बादल्या या पहिल्या प्रकारातल्या.


 प्लास्टिकचे कारखाने जगभर फार मोठ्या प्रमाणात उत्पादन करतात. यासाठी छोट्या कारखान्यापासून ते अवाढव्य कारखान्यांपर्यंत विविध प्रकारची मशिनरी वापरली जाते. काचेचे वस्तू तयार करताना वापरल्या जाणाऱ्या पद्धतीने किंवा प्लॅस्टिकच्या रसात हवेचे बुडबुडे सोडून त्यांच्या साह्याने केलेल्या वस्तूंत बाटल्या, बरण्या बनतात. नायलॉनचे दोर बनवण्यासाठी लोखंडी दोराप्रमाणेच गरम रस लहान तोंडातून खेचण्याची पद्धत वापरली जाते, तर प्लास्टिकचे पापुद्रे रोलरवरुन दाबून बनवतात. सगळ्यात आकर्षक पद्धत म्हणजे एखाद्या तयार साच्यात पूर्ण दाबाने प्लॅस्टिक रस सोडण्याची. पाहिजे त्या आकाराची आकर्षक वस्तू या प्रकाराने एकसंधपणे निर्माण होते, हे विशेष. आपल्या रोजच्या वापरातल्या टूथब्रश, कंगवा, गमबूट, पेनस्टॅँड हे सारे या पद्धतीने बनते.


प्लास्टिकने आपले जग किती व्यापावे ? खेळाचे साहित्य तर प्लॅस्टिकचे असतेच; पण आता सारी मैदानेही पॉलिग्रासची म्हणजे प्लास्टिकची बनत आहेत. घरातील फुलदाण्या व त्यांतील फुलेही प्लास्टिकचीच वापरली जातात. सर्वांवर कडी म्हणजे एकमेकांना ओळखीसाठी दिली जाणार व्हिजिटिंग कार्ड्सही आता प्लास्टिकमध्येच बनू लागली आहेत. प्लास्टिक नष्ट करणे अवघड म्हणून त्याचा कचरा फार कटकटीचा ! एकच बाब यात चांगली आहे. प्लास्टिक म्हणजे कचकड्याचे जग असे मात्र न राहता अभेद्य, चक्क बुलेटप्रुफ असे प्लास्टिक सध्या वापरात येत आहे.

 


🔸सम्राट अशोक :

 🔸सम्राट अशोक :

1) ज्या सम्राट अशोकाचे चक्र राष्ट्र ध्वजावर घेतले.


2) ज्या सम्राट अशोकाचे " सत्यमेव जयते " हे ब्रीद वाक्य म्हणून देशाने स्वीकारले.


3)ज्या सम्राट अशोकाची चार सिंहाची प्रतीमा देशाची मुद्रा म्हणून स्विकारली.


4) ज्या सम्राटला देशाचा सर्वोत्तम तथा सर्वश्रेष्ठ सम्राट म्हणून मानले जाते.


5) ज्या सम्राट अशोकामुळे भारताला जगात नावलौकिक  प्राप्त झाले.


6) ज्या अशोकामुळे सबंध विश्व भारताला अशोकाचा भारत म्हणून ओळखते.


7) ज्याच्या नावाने देशात सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार अशोक चक्र दिल्या जाते. 


8) ज्या सम्राटाचे राज्य पाकीस्तान, अफगानिस्थान, ईरान , भूतान ,बांग्लादेशापर्यंत पसरलेले होते. 


9) ज्या सम्राटामुळे भारताला जम्बूदीप भारत म्हणून ओळख प्राप्त झाली. 


10) ज्याने सुवर्णमय भारत निर्माण निर्माण केला.


11)  ज्याच्या काळात भारतात साक्षरतेचे प्रमाण 80 % होते.


12) ज्या अशोकाच्या काळात भारताचा विकासाचा दर 32.5 % होता. ( आता भारताचा विकास दर 7% ते 9% दरम्यान आहे तर अमेरिकेचा 14% ते 20 % दरम्यान आहे.) 


13) ज्या सम्राट अशोकाच्या काळात भारत जागतिक महासत्ता होती.


14) ज्या सम्राटामुळे भारतीय बौद्ध धर्म विश्व धर्म बनला.


15)ज्याच्या शासन काळात  मानव - प्राणी - पर्यावरण यांच्या विकासाला व संरक्षणाला प्राधान्यक्रम दिला जात होता.


16) ज्या महान अशोकाला सबंध जग देवानांप्रिय प्रियदर्शी चक्रवर्ती सम्राट म्हणून ओळखतात.


सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य तथा सम्राट अशोकाची जयंती 

संकलन) :-

गजानन गोपेवाड 


 💐💐🙏🏻🙏🏻

गुरुवार, ७ एप्रिल, २०२२

*👨‍⚕️👩‍⚕️👨‍⚕️७ एप्रिल १९४८👨‍⚕️👩‍⚕️👨‍⚕️* 🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺 *जागतिक आरोग्य संघटना स्थापना*

 *👨‍⚕️👩‍⚕️👨‍⚕️७ एप्रिल १९४८👨‍⚕️👩‍⚕️👨‍⚕️*

🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺🩺

*जागतिक आरोग्य संघटना स्थापना*

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जागतिक आरोग्य संघटना :

*(वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशन, WHO)* 

      ही एक आंतरराष्ट्रीय सहकार्याने कार्य करणारी संस्था असून ती राष्ट्रसंघाच्या आरोग्य यंत्रणेचा व पॅरिस येथील ‘आंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक आरोग्य कार्यालया’चा (Office Internationale d’hygiene Publique) वारसा पुढे चालवीत आहे. *‘आंतरराष्ट्रीय महत्त्वाचे रोगप्रतिबंधक व रोगनियंत्रक कार्य करणे’* हे या संस्थेचे ध्येय आहे. असे प्रयत्न करणाऱ्या संस्था पूर्वीही होत्या.


   इतिहास : भयंकर साथीचे रोग संसर्गामुळे पसरतात आणि अशा संसर्ग झालेल्या व्यक्तींचा विलग्नवास करण्याचे *(इतरांपासून अलग ठेवण्याचे, क्वारंटाइनाचे)* महत्त्व अगदी प्राचीन काळापासून लोकांना पटले होते. *चौदाव्या शतकात अशा विलग्नवासाची व्यवस्था भूमध्य समुद्रावरील बंदरात होती.*


विलग्नवासामुळे रोगांचा प्रसार नेहमी थांबेच असे नाही, कारण त्या काळी रोगप्रसाराच्या कारणांचे ज्ञानच अपुरे होते. निरनिराळ्या देशांतील बंदरांत विलग्नवास व्यवस्था निरनिराळी असे, तसेच त्याकरिता केलेले कायदेही एकाच प्रकारचे नसत त्यामुळे व्यापारउदीमाला बराच अडथळा येई. १८५२ पासून या कायद्यांच्या एकसूत्रीकरणाचे प्रयत्न झाले, परंतु विसाव्या शतकाच्या सुरुवातीस सूक्ष्मजंतुशास्त्राची भक्कम पायावर स्थापना होऊन रोगप्रतिबंधाच्या मूलतत्त्वांबद्दल बरेचसे एकमत होईपर्यंत या कामी विशेष प्रगती झाली नाही. विलग्नवासविषयक नियमांमुळे साधारण एकसूत्रीपणा आल्यानंतर या कार्यासाठी एखादी आंतरराष्ट्रीय यंत्रणा असावी, असा विचार प्रबळ झाला. अशा यंत्रणेची मुख्य उद्दिष्टे खालीलप्रमाणे असावीत हा विचारही पटू लागला.


*(१) स्‍वास्थ्यसंरक्षणविषयक आंतरराष्ट्रीय संकेतांचा अर्थ लावून त्यांत वेळोवेळी होणाऱ्या बदलांचा अभ्यास करणे त्या संकेतांचा भंग होत असल्याच्या तक्रारीबद्दल अधिकृत मत प्रदर्शित करणे.*

 

*(२) रोगविज्ञानात होत असलेल्या प्रगतीचा अभ्यास करण्यासाठी परिषदा भरवून त्यानुसार आंतरराष्ट्रीय संकेत व कायदे यांत बदल सुचविणे.*        


*(३) साथीच्या रोगांबद्दल जागतिक माहिती गोळा करून ती सर्व देशांना पुरविणे.*


   अशा माहितीच्या आधारावरच विलग्नवासविषयक नियम करण्यात येतात. १९०२ मध्ये या उद्दिष्टपूर्तीसाठी अखिल अमेरिकन आरोग्य संस्था स्थापण्यात आली. १९०९ मध्ये *पॅरिस* येथे *‘आंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक आरोग्य कार्यालय’* स्थापण्यात आले. ही संस्थाच पहिली जागतिक स्वरूपाची संस्था असून ती १९४७ ते १९५० च्या दरम्यान जागतिक आरोग्य संघटनेत विलीन झाली.


   यापूर्वी कित्येक वर्षे आंतरराष्ट्रीय सहकार्याने सोडवण्यासारख्या अनेक प्रश्नांकडे लोकांचे लक्ष वेधले गेले होते. उदा., औषधिद्रव्ये व रक्तरसापासून (रक्तातील घन पदार्थविरहित रक्तद्रवापासून) बनविलेल्या लसींचे प्रमाणीकरण, रोगांचे सर्वमान्य असे नामाभिधान ठरविणे, जन्ममृत्यूंची माहिती एकत्र करून पुरविणे व मादक पदार्थांविषयी (अफू, कोकेन वगैरेंविषयी) वैद्यकीय माहिती पुरविणे वगैरे. रोगासारख्या संकटाविरुद्ध आंतरराष्ट्रीय आघाडी उभारावयाची असेल, तर त्यासाठी प्रत्येक राष्ट्रातील जनतेची आरोग्यपातळी वाढविणे हाच एक कायमचा आणि खरा टिकाऊ उपाय आहे, याचीही जाणीव होऊ लागली. रोगसंसर्ग कमी होण्यासाठी राष्ट्राराष्ट्रांनी आपापसांत बांध उभे करणे हे प्रभावी साधन होऊ शकत नाही, हेही पटू लागले होते. पॅरिस येथील संस्थेच्या घटनेत अशा तऱ्हेच्या जागतिक प्रयत्नांना वाव नसल्यामुळे १९२१ मध्ये राष्ट्रसंघाने अशी जागतिक आरोग्य यंत्रणा उभी केली, ही एक सुदैवाचीच गोष्ट मानली पाहिजे.

*🙏🙏🙏शुभ प्रभात🙏🙏🙏*

संकलन -)गजानन गोपेवाड 

उमरखेड जिल्हा - यवतमाळ ४४५२०६


प्रभात दर्शन

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

🦋🦚🌹🌻🦢🛕🦢🌻🌹🦚🦋

चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*षष्ठी*,मृगशिरा नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

गुरुवार, ०७ एप्रिल २०२२.

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                        *प्रभात दर्शन*

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नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य 

                 न चायुक्तस्य भावना,

न चाभावयत: शांतिर

                शांतस्य कुत: सुखम्।


*भावार्थ -  जिस मनुष्य का मन इंद्रियों अर्थात् धन, लोभ, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके मन में भावना (आत्मज्ञान) नहीं होती, और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे किसी भी प्रकार से शान्ति नहीं मिलती और जिसके मन में शान्ति न हो, उसे सुख कहां से प्राप्त होगा, अत: सुख प्राप्त करने के लिए मन पर नियन्त्रण होना बहुत आवश्यक है।*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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सोमवार, ४ एप्रिल, २०२२

प्रभात दर्शन

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

🦋🦚🌹🌻🦢🛕🦢🌻🌹🦚🦋

चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*चतुर्थी*,कृतिका नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

मंगलवार, ०५ एप्रिल २०२२.

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                         *प्रभात दर्शन*

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मुक्ताभिमानी मुक्तो हि 

               बद्धो बद्धाभिमान्यपि।

किवदन्तीह सत्येयं 

               या मतिः सा गतिर्भवेत्॥


*भावार्थ:- स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है, और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है। यह कथन सत्य ही है, कि जैसी बुद्धि होती है, वैसी ही गति होती है।*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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गाथा बलिदानाची* 🇮🇳🇮🇳 ➿➿➿➿➿➿➿➿➿➿ *बाबू जगजीवन राम* (स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता)

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🇮🇳🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳🇮🇳

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                                                                   *बाबू जगजीवन राम*

   (स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता)

                                                                             *जन्म : ५ एप्रिल १९०८*

(भोजपुर का 'चंदवा गाँव', बिहार)

*मृत्यु : ६ जुलाई १९८६*

                                                                      अन्य :  नाम बाबूजी                                          पिता : शोभा राम 

संतान : पुत्री- मीरा कुमार

नागरिकता : भारतीय

प्रसिद्धि : दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है।

पार्टी : कांग्रेस और जनता दल

पद : श्रम मंत्री, रेल मंत्री, कृषि मंत्री, रक्षा मंत्री और उप-प्रधानमंत्री आदि पदों पर रहे।

शिक्षा : स्नातक

विद्यालय : कलकत्ता विश्वविद्यालय

भाषा : हिन्दी,अंग्रेज़ी

जेल यात्रा : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल यात्रा की।

अन्य जानकारी : बाबूजी सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे १९५२ से १९८४ ई. तक लगातार सांसद चुने गए।

                                                                                                                        जगजीवन राम  आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष जिन्हें आदर से 'बाबूजी' के नाम से संबोधित किया जाता था। लगभग ५० वर्षो के संसदीय जीवन में राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा बेमिसाल है। उनका संपूर्ण जीवन राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता और विशिष्ट उपलब्धियों से भरा हुआ है। सदियों से शोषण और उत्पीड़ित दलितों, मज़दूरों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए जगजीवन राम द्वारा किए गए क़ानूनी प्रावधान ऐतिहासिक हैं। जगजीवन राम का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में महती योगदान है।


🙍🏻‍♂️ *जन्म*

एक दलित के घर में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर छा जाने वाले बाबू जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। बाबू जगजीवन राम का जन्म ५ अप्रैल १९०८ को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे - प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी। इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था। उनके पिता शोभा राम एक किसान थे, जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी।


📖 *शिक्षा*

इन्होंने स्नातक की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से १९३१ में ली।


🇮🇳 *स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग*

जगजीवन राम उस समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले दल में शामिल हुए, जब अंग्रेज़ अपनी पूरी ताक़त के साथ आज़ादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे। पृथक् निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अंग्रेजों ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी। मुस्लिम लीग की कमान जिन्ना के हाथ में थी और वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली बने थे।


गाँधी जी ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों के इरादे को भांप लिया था कि स्वतंत्रता आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए अंग्रेज़ों की फूट डालो, राज करो नीति को बाबूजी ने समझा। हिन्दू मुस्लिम विभाजन कर अंग्रेज़ों ने दलितों और सवर्णों के मध्य खाई बनाने प्रारम्भ की, जिसमें वह सफल भी हुए और दलितों के लिए 'निर्वाचन मंडल', 'मतांतरण' और 'अछूतिस्तान' की बातें होने लगीं। महात्मा गांधी ने इसके दूरगामी परिणामों को समझा और आमरण अनशन पर बैठ गए। यह राष्ट्रीय संकट का समय था। इस समय राष्ट्रवादी बाबूजी ज्योति स्तंभ बनकर उभरे। उन्होंने दलितों के सामूहिक धर्म-परिवर्तन को रोका और उन्हें स्वतंत्रता की मुख्यधारा से जोड़ने में राजनीतिक कौशल और दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस घटना के बाद बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। वह बापू के विश्वसनीय और प्रिय पात्र बने और राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए।


💂‍♂️ *अंग्रेज़ों का विरोध*

१९३६ में २८ साल की उम्र में ही उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया था। 'गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट' १९३५ के अंतर्गत १९३७ में अंग्रेज़ों ने बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए यूनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनवाने का निष्फल प्रयत्न किया। इस चुनाव में बाबूजी निर्विरोध निर्वाचित हुए और उनके 'भारतीय दलित वर्ग संघ' के १४ सदस्य भी जीते। उनके समर्थन के बिना वहां कोई सरकार नहीं बन सकती थी। यूनुस ने बाबूजी को मनचाहा मंत्री पद और अन्य प्रलोभन दिये, किंतु बाबूजी ने उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया। यह देखकर गांधी जी ने 'पत्रिका हरिजन' में इस पर टिप्पणी करते हुए इसे देशवासियों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बताया। उसके बाद बिहार में कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बनें किन्तु कुछ समय में ही अंग्रेज़ सरकार की लापरवाही के कारण महात्मा जी के कहने पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे रहे। मुंबई में ९ अगस्त १९४२ को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया तो जगजीवन राम सबसे आगे थे। योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आन्दोलन तेज करना था लेकिन दस दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिए गये।                                           💠 *राजनीति में सफलता*

बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।

सन १९४६ में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि श्रम, कृषि, संचार, रेलवे या रक्षा, जो भी मंत्रालय उन्हें दिया गया उन्होंने उसका प्रशासनिक दक्षता से संचालन किया और उसमें सदैव सफ़ल रहे। किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे। उन्होंने किसी भी मंत्रालय से कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया और सभी मंत्रालयों का कार्यकाल पूरा किया।

 

♨️ *श्रम मंत्री*

१९४६ तक वह गांधी जी के हृदय में उतर गए थे। अब तक अंग्रेज़ों ने भी बाबूजी को भारतीय दलित समाज के सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार कर लिया। आज़ादी के बाद जो पहली सरकार बनी उसमें उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। यह उनका प्रिय विषय था। वह बिहार के एक छोटे से गांव की माटी की उपज थे, जहां उन्होंने खेतिहर मज़दूरों का त्रासदी से भरा जीवन देखा था। विद्यार्थी के रूप में कोलकाता में मिल - मज़दूरों की दारुण स्थिति से भी उनका साक्षात्कार हुआ था। बाजूजी ने श्रम मंत्री के रूप में मज़दूरों की जीवन स्थितियों में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट क़ानूनी प्रावधान किए, जो आज भी हमारे देश की श्रम - नीति का मूलाधार हैं।                              🔹 *मज़दूरों के हितैषी*

बाबूजी सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे १९५२ से १९८४ तक लगातार सांसद चुने गए।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ा तो उनका प्रयास था कि पाकिस्तान की भांति भारत के कई टुकड़े कर दिए जाएं। शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी ने दलितों और अन्य भारतीयों के मध्य फूट डालने की अंग्रेज़ों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लार्ड वावेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उन्हें श्रम विभाग दिया गया। इस समय उन्होंने ऐसे क़ानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मज़दूरों और दबे कुचले वर्गों के हित की दिशा में मील के पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने 'मिनिमम वेजेज एक्ट', 'इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट' और 'ट्रेड यूनियन एक्ट' बनाया जिसे आज भी मज़दूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 'एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट' और 'प्रोवीडेंट फंड एक्ट' भी बनवाया।


🏛️ *संसद में*

भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। १९५२ में उन्हें नेहरू जी ने 'संचार मंत्री' बनाया। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी था। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांवों में डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में नेहरू जी ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उस समय उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद डाली और रेलवे कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की। उन्हीं के प्रयास से आज रेलवे देश का सबसे बड़ा विभाग है। वे सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे १९५२ से १९८४ तक लगातार सांसद चुने गए।                 

🌀 *संगठन*

उन्हें पद की लालसा बिल्कुल न थी। जब कामराज योजना आई तो उन्होंने संगठन का काम प्रारम्भ किया। शास्त्री जी की मृत्यु के बाद जब इंदिरा जी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो इंदिरा जी ने बाबू जी को अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। वह भारत के लिए बहुत कठिन दिन थे।


🌴 *हरित क्रांति*

१९६२ में चीन और १९६५ में पाकिस्तान से लड़ाई के कारण ग़रीब और किसान भुखमरी से लड़ रहे थे। अमेरिका से पी.एल- ४८० के अंतर्गत सहायता में मिलने वाला गेहूं और ज्वार मुख्य साधन था। ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ नॉरमन बोरलाग ने भारत आकर 'हरित क्रांति' का सूत्रपात किया। हरित क्रांति के अंतर्गत किसानों को अच्छे औजार, सिंचाई के लिए पानी और उन्नत बीज की व्यवस्था करनी थी। आधुनिक तकनीकी के पक्षधर बाबू जगजीवन राम कृषि मंत्री थे और उन्होंने डॉ नॉरमन बोरलाग की योजना को देश में लागू करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। दो ढाई साल में ही हालात बदल गये और अमेरिका से अनाज का आयात रोक दिया गया। भारत 'फूड सरप्लस' देश बन गया था।                                     👮‍♂️ *रक्षा मंत्री के रूप में*

छुआछूत विरोधी एक सम्मेलन में जगजीवन राम ने कहा- सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो, मदिरा मत पियो, सफाई के साथ रहो, अब काम नहीं चलेगा। अब दलित उपदेश नहीं, अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी। शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है। डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की माग की है। राष्ट्र की रचना हमसे हुई है, राष्ट्र से हमारी नही। राष्ट्र हमारा है। इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है। महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा। इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा।

१९६२ और १९६५ की लड़ाई के बाद भूख की समस्या को उन्होंने बहुत बहादुरी और सूझबूझ से परास्त किया। १९७१ में बांग्लादेश की स्थापना के पहले भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में बाबू जी ने जिस तरह अपनी सेनाओं को राजनीतिक सहयोग दिया वह सैन्य इतिहास में एक उदाहरण है। जब कांग्रेस के तमाम पुराने नेताओं ने इंदिरा गांधी का साथ छोड़ दिया था, बाबू जगजीवन राम हमेशा उनके साथ रहे, किंतु उन्होंने कभी भी मूल्यों से समझौता नहीं किया।


✈️ *संचार और परिवहन मंत्री के रूप में*

इसी प्रकार संचार और परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने विरोध के बाद भी निजी हवाई सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की दिशा में सफल प्रयोग किया। फलस्वरूप 'वायु सेवा निगम' बना और 'इंडियन एयर लाइंस' व 'एयर इंडिया' की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण का प्रबल विरोध हुआ, जिसे देखते हुए सरदार पटेल भी इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने के पक्ष में थे। बाबूजी ने उनसे कहा था - 'आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के सिवा और काम ही क्या बचा है?' इसी समय बाबूजी के प्रयत्नों से गांव - गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारख़ाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारख़ाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारख़ाना' की स्थापना की।


बाबूजी ने सरदार पटेल से कहा था - 'आज़ादी के बाद देश के पुनर्निर्माण के सिवा और काम ही क्या बचा है?'

पटना में आयोजित छुआछूत विरोधी सम्मेलन में उन्होंने कहा - सवर्ण हिन्दुओं की इन नसीहतों से कि मांस भक्षण छोड़ दो, मदिरा मत पियो, सफाई के साथ रहो, अब काम नहीं चलेगा। अब दलित उपदेश नहीं, अच्छे व्यवहार की मांग करते हैं और उनकी मांग स्वीकार करनी होगी। शब्दों की नहीं ठोस काम की आवश्यकता है। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों को अपना अलग देश बनाने के लिए उकसा दिया है। डॉ आम्बेडकर ने अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मंडल की माग की है। राष्ट्र की रचना हमसे हुई है, राष्ट्र से हमारी नही। राष्ट्र हमारा है। इसे एकताबद्ध करने का प्रयास भारत के लोगों को ही करना है। महात्मा गाँधी ने निर्णय लिया है कि छुआछूत को समाप्त करना होगा। इसके लिए मुझे अपनी कुर्बानी भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। देश की आज़ादी की लड़ाई में सभी धर्म और जाति के लोगों को बड़ी संख्या में जोड़ना होगा।                       🔸 *जनता दल में*

आज़ादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए। १९६९ में कांग्रेस के विभाजन के समय इन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी का साथ दिया तथा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए । १९७० में इन्होनें कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता दल में शामिल हो गये थे। सब जानते हैं कि ६ फरवरी १९७७ के दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया गया उनका इस्तीफ़ा ही वह ताक़त थी जिसने इमरजेंसी को ख़त्म किया।


🔮 *जीवनी के मुख्य बिन्दु*

जगजीवन राम ने १९२८ में कोलकाता के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मज़दूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग ५० हज़ार लोग शामिल हुए।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस तभी भांप गए थे कि जगजीवन राम में एक बड़ा नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं।

महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जगजीवन राम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उन बड़े नेताओं में शामिल थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंकने के अंग्रेज़ों के फैसले की निन्दा की थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

वर्ष १९४६ में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और १९४६ से १९५२ तक इस पद पर रहे।

जगजीवन राम १९५२ से १९८६ तक संसद सदस्य रहे। १९५६ से १९६२ तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला। १९६७ से १९७० और फिर १९७४ से १९७७ तक वह कृषि मंत्री रहे।

इतना ही नहीं १९७० से १९७१ तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। १९७० से १९७४ तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया।

२३ मार्च,१९७७ से २२ अगस्त, १९७९ तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे।

आपातकाल के दौरान वर्ष १९७७ में वह कांग्रेस से अलग हो गए और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए। इसके बाद १९८० में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया।                                 🪔 *निधन*

६ जुलाई, १९८६ को ७८ साल की उम्र में इस महान् राजनीतिज्ञ का निधन हो गया। बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है। वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी नयी दिशा प्रदान की।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳   

🙏🙏🙏 *शुभ प्रभात*🙏🙏🙏

संकलन -) 

गजानन गोपेवाड 

उमरखेड जिल्हा - यवतमाळ ४४५२०६

शनिवार, २ एप्रिल, २०२२

प्रभात दर्शन

 🌳⛳ *शुभ प्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🌳

🦋🦚🌹🌻🦢🛕🦢🌻🌹🦚🦋

चैत्र मास,शुक्ल पक्ष,*प्रतिप्रदा*,रेवती नक्षत्र,सूर्य उत्तरायण,बसन्त ऋतु,युगाब्द ५१२४,विक्रम संवत-२०७९, 

शनिवार, ०२ एप्रिल २०२२.

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                        *प्रभात दर्शन*

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      *🚩हिंदू  नूतन वर्षाभिनंदन*

               *चैत्र शुध्द प्रतिपदा* 

               *🚩गुढीपाडवा🚩*



*नववर्ष विक्रम सम्वत २०७९ आपके एवं आपके परिवार के लिये मंगलमय हो। माँ दुर्गा आपको एवं आपके परिवार को समस्त दैहिक, दैविक, भौतिक सुख एवं आरोग्य प्रदान करे। ॐ*


      *अपने दैनिक जीवन में अधिकाधिक सम्वत एवं तिथि का प्रयोग करें। क्योंकि हमारे सभी पर्व, व्रत, महापुरुषों के जन्मदिन एवं हमारे विवाह, जन्म एवं समस्त संस्कार इसी अनुसार मनाये जाते हैं।*

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*🚩🐅आपका दिन मंगलमय हो🐅🚩*

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*हिन्दू नववर्ष आरंभ*